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सिस्टम समझे ‘आप ‘ “Jagran Junction Forum”

kase kahun?
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पिछले दिनों दिल्ली में जो राजनैतिक नाटक चला उसने शासन प्रशासन की कार्य नीतियों पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया। कार्य शैली को मिले जन समर्थन और विरोध के बीच उपजी अव्यवस्थाओं और एक मुख्यमंत्री का अपने ही प्रशासन के खिलाफ होना चर्चा का विषय बन गया।
ये सही है कि विधानसभा चुनाव में आप एक बहुत दमदार पार्टी के रूप में उभरी है लेकिन अगर गहराई से विश्लेषण किया जाये तो आप की इस जीत के पीछे अन्ना का अनशन ,उनकी टीम के प्रति विश्वास ने भी काम किया। इसके साथ ही इस जीत में युवाओं को दिखाए गए सपनों की भी भूमिका रही। ये देश का वो वर्ग है जो बचपन से भ्रष्टाचार ,अव्यवस्थाओं की कहानियाँ सुनते बड़ा हुआ है ,जिसे विभागीय कार्यशैली नियमो कायदों की जानकारी नहीं है। इस वर्ग ने देश में इतना बड़ा आंदोलन पहली बार होते देखा। गाँधीजी के जिन आन्दोलनों के बारे में किताबों में पढ़ा था वैसा सच में कुछ हो सकता है ये पहली बार जाना। जिसने युवा वर्ग के साथ ही समाज के एक बड़े वर्ग को उद्वेलित किया। समाज को व्यवस्थाओं को बदलने का सपना ‘आप ‘के माध्यम से इस वर्ग ने संजोया और वो आप की अप्रत्याशित जीत के रूप में सामने आया, और इसी ने आप के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के वस्तुस्थिति के आकलन को कमजोर कर दिया। वे भूल गए कि शासन की एक तय कार्यशैली होती है हर विभाग के अपने नियम कायदे कानून होते है और इससे बढ़ कर संवेधानिक पद पर बैठे व्यक्ति कि एक नैतिक जिम्मेदारी होती है कि वह जनता का देश की क़ानून व्यवस्थों में विश्वास बनाये रखने के लिए कार्य करे।

दिल्ली की पुलिस की कार्यशैली हमेशा से विवादित रही है लेकिन इसके साथ ही पुलिस की राज्य और केंद्र के प्रति जिम्मेदारियों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। आम जनता की बात छोड़ दे कम से काम जिम्मेदार संवेधानिक पदों पर बैठे लोगों से उम्मीद की जाती है कि वह इस व्यवस्था को बनाये जाने के कारणों को जाने और समझे लेकिन केजरीवाल और उनके मंत्रियों ने पुलिस को जिस तरह से नियमों के विरुद्ध कार्यवाही करने को मज़बूर किया उन्होंने एक बहुत गलत मिसाल पेश की। कई बार देखने सुनने में आता है कि राजनैतिक दबाव में नौकरशाही को कई गलत काम करने पड़ते हैं ये इसका निकृष्टम उदाहरण है। राज्य के लिए पुलिस व्यवस्था की माँग वैचारिक स्तर पर पुरजोर तरीके से भी उठाई जा सकती थी क्योंकि ये एक संवैधानिक मसला है लेकिन उसके लिए धरना प्रदर्शन करना कोई कारगर तरीका नहीं कहा जा सकता।

इसे इस सन्दर्भ में भी देखा जाना चाहिए कि प्रशासन के धरना स्थल बदलने के हर आग्रह को केजरीवाल ने ठुकरा दिया ,जनता की परेशानियों को नज़रअंदाज़ किया और अपनी ही बात को सही मान कर जो अड़ियल रवैया अपनाया है वह किसी भी तरह से सही नहीं कहा जा सकता। उनके धरने के मद्दे नज़र कई मेट्रो स्टेशन बंद करने पड़े सडकों पर लोगों का हुजूम डटा रहा जिससे काम पर आने जेन वालों महिलाओं बुजुर्गों बच्चों को जो परेशानियाँ हुईं उन्हें कतई सही नहीं कहा जा सकता। एक मुख्यमंत्री जिसका दायित्व राज्य की व्यवस्था बनाने का है वाही अगर अव्यवस्था का मार्ग अपनाता है तो इसे अराजकता का ही नाम दिया जा सकता है।
इस तरह की अराजकता से न ही कोई निष्कर्ष निकल सकता है न ही समाधान। ये देश की युवा पीढ़ी को भ्रमित करने का एक बेहद घटिया उदाहरण है। अभी हाल ही में महाराष्ट्र में टोल नाके पर हुए धरने और प्रदर्शन इसी की अगली कड़ी है। निसंदेह ऐसे वाकये लोगो को भड़काने का काम करेंगे जिसका असर दूसरे राज्यों पर भी पड़ेगा। लेकिन ये भी सही है कि नीतिगत फैसले विचार विमर्श से लिए जाते है इस तरह के धरने प्रदर्शन से कोई हल नहीं निकलने वाला है।
समाज को क्रांति की जरूरतहै इसके पहले ये महत्वपूर्ण है कि ये जाना जाये की बदलाव कहाँ और किस हद तक जरूरी है। किसी भी चीज़ को बदलने के पहले उसकी अच्छाइयों और बुराइयों को जानना जरूरी है सिर्फ बदलने के लिए बदलाव नहीं किया जाता। हर नियम कानून की समीक्षा होती है कार्यशैली कि पड़ताल की जाती है फिर बदलाव की जरूरत समझी जाती है ,बदलाव से उत्पन्न स्थिति का आकलन किया जाता है और इसके लिए तंत्र को समझाना उसके लिए कार्य करना पड़ता है। केजरीवाल जिस तरह बिना सिस्टम को समझे सिर्फ बदलाव के लिए बदलना चाहते है वह समाज के लिए घातक है। कई बार तो तंत्र में कोई खामी नहीं होती सिर्फ उसे सुचारु रूप से चलाने की आवश्यकता होती है उसके लिए धरने प्रदर्शन की नहीं बल्कि तंत्र में और लोगो में विशवास करने की ,उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता होती है। केजरीवाल अपनी कार्यशैली से लोगो को भड़काने का कार्य कर रहे है ,वे सिस्टम के विरुद्ध लोगो को उकसाने का काम कर रहे है इस तरह क्रांति नहीं आयेगी बल्कि अविश्वास के साथ लोगो का काम करना और करवाना दूभर हो जायेगा जिसका परिणाम अंततः अराजकता ही होगा।
कविता वर्मा

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